बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान ने बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करते हुए कहा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अब मल्टीप्लेक्स दर्शकों पर अधिक ध्यान दे रही है, जबकि साउथ इंडस्ट्री अभी भी सिंगल-स्क्रीन दर्शकों के लिए फिल्में बना रही है। इसी वजह से बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करने पर साफ दिखता है कि साउथ की फिल्में ज्यादा सफल हो रही हैं क्योंकि वे जनता की भावनाओं से सीधे जुड़ती हैं।
हाल ही में आमिर खान के 60वें जन्मदिन के अवसर पर ‘आमिर खान: सिनेमा का जादूगर’ नाम से एक विशेष फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया था। इसी कार्यक्रम में उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की मौजूदा स्थिति पर खुलकर बात की। उनके साथ मौजूद थे प्रसिद्ध गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर। दोनों दिग्गजों ने बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करते हुए सिनेमा में आ रहे बदलावों और उद्योग की चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए।
बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना: आमिर खान की राय
आमिर खान का मानना है कि बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करने पर यह साफ दिखता है कि साउथ की फिल्में अब भी उन भावनाओं पर केंद्रित हैं जो सीधे दिल तक पहुंचती हैं – गुस्सा, प्यार, बदला, संघर्ष। बॉलीवुड ने इनसे ध्यान हटाकर अधिक जटिल और मॉडर्न कहानियों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है, जो शायद हर दर्शक से कनेक्ट नहीं हो पा रही हैं।
उन्होंने कहा, “साउथ की फिल्में अब भी वही हैं, जो पहले बॉलीवुड हुआ करता था – बड़े कैनवास, मजबूत इमोशन्स और दमदार एक्शन। लेकिन अब बॉलीवुड सिर्फ मल्टीप्लेक्स दर्शकों के हिसाब से फिल्में बना रहा है, जिसकी वजह से आम दर्शक उससे दूर होता जा रहा है।”
ओटीटी का प्रभाव: बॉलीवुड की सबसे बड़ी गलती?
आमिर खान ने इस बात पर भी चिंता जताई कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने खुद ही अपने बिजनेस मॉडल को कमजोर कर लिया है। उन्होंने कहा, “पहले लोग थिएटर में फिल्में देखने जाते थे क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। लेकिन अब हम खुद अपने दर्शकों से कह रहे हैं कि अगर आप हमारी फिल्म थिएटर में नहीं देखना चाहते तो कोई बात नहीं, आठ हफ्ते में यह ओटीटी पर आ जाएगी और आप इसे वहीं देख सकते हैं।”
बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करें तो साउथ इंडस्ट्री थिएटर बिजनेस को प्राथमिकता देती है। उनकी फिल्में लंबे समय तक थिएटर में ही रहती हैं, जिससे बॉक्स ऑफिस पर उनकी कमाई बढ़ती है। दूसरी ओर, बॉलीवुड जल्दी से जल्दी अपनी फिल्में ओटीटी पर रिलीज कर देता है, जिससे थिएटर बिजनेस कमजोर हो रहा है।
जावेद अख्तर की चेतावनी: “हमारी साइकिल भी बिक जाएगी”
जावेद अख्तर ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि थिएटर से ओटीटी पर आने में कम से कम 3-4 महीने का अंतर होना चाहिए। इससे दर्शक थिएटर जाने के लिए मजबूर होंगे और फिल्म उद्योग की कमाई बढ़ेगी।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “अगर हमने जल्दी समझदारी नहीं दिखाई तो हमारी साइकिल भी बिक जाएगी।” उनका कहना था कि अगर इंडस्ट्री जल्दी नहीं संभली, तो यह संकट और गहरा सकता है।
बॉलीवुड को साउथ से क्या सीखना चाहिए?
बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करते हुए दोनों दिग्गजों ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदु रखे, जिनसे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को सीख लेनी चाहिए:
- थिएटर से ओटीटी पर फिल्म लाने का समय बढ़ाना: कम से कम 3-4 महीने का अंतर जरूरी है, ताकि थिएटर का बिजनेस बना रहे।
- जमीन से जुड़ी कहानियों पर ध्यान देना: बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करें तो साउथ की तरह इमोशन्स और बड़े कैनवास वाली फिल्में बनानी होंगी।
- सिर्फ मल्टीप्लेक्स दर्शकों के लिए फिल्में न बनाना: हिंदी सिनेमा को सिंगल-स्क्रीन दर्शकों की भी चिंता करनी होगी।
- स्टार सिस्टम से हटकर कंटेंट पर ध्यान देना: सिर्फ बड़े नामों से फिल्में नहीं चलेंगी, कंटेंट की ताकत भी जरूरी होगी।
क्या महंगे टिकट और पॉपकॉर्न कीमतें समस्या हैं?
कई लोगों का मानना है कि महंगे टिकट और खाने-पीने की चीजें दर्शकों को थिएटर से दूर कर रही हैं। लेकिन जावेद अख्तर इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा, “अगर आप फाइव-स्टार होटल में महंगे दाम चुका सकते हैं, तो मल्टीप्लेक्स में पैसे देने में दिक्कत क्यों?”
आमिर खान ने भी इस पर सहमति जताई और कहा, “जब ‘पुष्पा’ जैसी फिल्म देखने जाते हो, तब पॉपकॉर्न के दाम क्यों नहीं याद आते?” उन्होंने इशारा किया कि असली समस्या टिकट की कीमतें नहीं, बल्कि कंटेंट की कमी है। अगर फिल्म दमदार होगी, तो लोग उसे देखने जरूर आएंगे।
सफल फिल्मों का फॉर्मूला: क्या सीखा जा सकता है?
बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करने पर यह भी साफ होता है कि साउथ की फिल्मों का सफलता का एक फॉर्मूला है – मजबूत कहानी, दमदार इमोशन्स और थिएटर में लंबे समय तक टिके रहने की क्षमता।
आमिर खान ने ‘लापता लेडीज’ का उदाहरण देते हुए कहा कि यह फिल्म लोगों को बहुत पसंद आई, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। वहीं, जावेद अख्तर ने ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’ का जिक्र किया, जिसे समीक्षकों ने सराहा, लेकिन दर्शकों तक नहीं पहुंच पाई।
निष्कर्ष: क्या बॉलीवुड बदल सकता है?
आमिर खान और जावेद अख्तर की इस बातचीत से यह साफ हुआ कि बॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना करने पर पता चलता है कि साउथ इंडस्ट्री ने अपने दर्शकों से जुड़ाव बनाए रखा है, जबकि बॉलीवुड धीरे-धीरे अपने मूल दर्शकों से दूर होता जा रहा है।
अगर बॉलीवुड को अपनी पहचान फिर से मजबूत करनी है, तो उसे अपने कंटेंट और बिजनेस मॉडल दोनों पर दोबारा विचार करना होगा। अन्यथा, जैसा जावेद अख्तर ने कहा, “हमारी साइकिल भी बिक जाएगी।”
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